Hard Times
Hard Times: For This Time by Charles Dickens
Hello everyone .......
This blog is based on the thinking activity,on the particular novel Hard Times which is written by Charles Dickens . This task assigned by dilip sir barad.
In this blog I'm going to deal with a topic like what is the difference between a play performance hard times and the novel Hard Times . Before discussing main topic let us look upon the historical background of the novel and shot information about the author and all.
Charles John Huffam Dickens (7 February 1812 – 9 June 1870) was an English novelist and social critic who created some of the world's best-known fictional characters, and is regarded by many as the greatest novelist of the Victorian era.His works enjoyed unprecedented popularity during his lifetime and, by the 20th century, critics and scholars had recognised him as a literary genius. His novels and short stories are widely read today.
His notable works :-
The Pickwick Papers,
Oliver Twist,
Nicholas Nickleby,
A Christmas Carol,
David Copperfield,
Bleak House,
Little Dorrit,
A Tale of Two Cities,
Great Expectations.
SONG OF THE PLAY :
This presents the reality of industrial and materialistic life.
कमाल की कहानी यह हेतो बड़ी पुरानी जी।
पर गौर से जो देखेंगे तो साफ नजर आयेगी सच्चाई इसमें आजकी।
छू न जाए छाव अगर आप को ये आजाकी तो जो चाहे वो कहेना जी।
तो चार्ल्स डिकेन्स की तरह हम भी क्यों न करे कल्पना कॉकटाउन जैसे शहर की।
रंग जहां की नदी के निर्मल पानी का भी हो चुका ही बैंगनी,
ये मशीनी कारखानों का जमाना यूं समझो कि आज का है।
मैटेरियलिज्म पेर अपने अच्छी तरह जमा चुका है।
हर व्यापारी नेता को ये खेल समझ में आ चुका है।
आए हो इस दुनिया में तो कम करो कुछ ऐसा,
हाथो हाथ माल बीके, अच्छे खासे दाम मिले,
ताकि और ज्यादा हो मुनाफा।
Emotions, imagination या compassion से कभी, पेट किसका भरता है क्या?
इनके बदले डॉलर या फिर पाउंड किसी को मिलता है क्या?
इसीलिए तो नजर में इनकी करना और सहानुभूति या किसी से हमदर्दी चीजें हैं बेकार की?
पर गौर से जो देखेंगे तो साफ नजर आयेगी सच्चाई इसमें आजकी।
The final song is at the end of the play about the general outcome of the play.
अमीर हो गरीब हो चाहे, है आखिर इंसान।
बेल नही हम जो करे भाग भाग के काम, रात-दिन सुबह-शाम।
इसीलिए हम करे जगन, Tension थोड़ी हो कम।
कुछ तो मोज-मस्ती हो, या कोई ऐसा खेल-तमाशा।
सोच पुरानी बदले जो, नई सोच से करे शुरुआत।
किसकी है ये जिम्मेदारी, कौन करेगा
कल्पना के घोड़े पर बैठे मिलकर साथ सब
दुनियाभर की सैर करे,
और दुसरो की गलतीओ से के सबक…
हर पेचीदा सवालों के जवाब ढूंढे हस्ते-हस्ते
ताकि सबकी जिंदगी में कुछ तो पड़े फरक।
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